हिरासत आदेश खारिज कर हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा, एनएसए क़ानून का सावधानी से प्रयोग करें

Prayagraj: People undergo thermal screening outside Allahabad High Court, during the fifth phase of COVID-19 lockdown, in Prayagraj, Monday, June 8, 2020. (PTI Photo)  (PTI08-06-2020_000147B)

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बीते सोमवार को कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत जावेद सिद्दीकी के हिरासत आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि अधिकारियों ने समय पर सलाहकार बोर्ड के समक्ष उनकी याचिका रिपोर्ट पेश नहीं की.

जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव और जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर की खंडपीठ ने जावेद सिद्दीकी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हिरासत आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि एनएसए जैसे कानून को प्रशासन द्वारा ‘अत्यधिक सावधानी’ के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए.

न्यायालय ने कहा, ‘जहां कानून ने सत्ता को अत्यधिक शक्ति प्रदान की है कि वे किसी भी व्यक्ति को सामान्य कानून के तहत मिले संरक्षण और कोर्ट के ट्रायल के बिना गिरफ्तार कर सकते हैं, ऐसे कानून को इस्तेमाल करते वक्त बेहद सावधानी बरती जानी चाहिए.’

अदालत ने कहा कि प्रशासन का ये दायित्व था कि वे कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार हिरासत आदेश पारित करते.

इसके बाद कोर्ट ने कहा कि यदि जावेद सिद्दीकी किसी अन्य मामले में आरोपी नहीं हैं तो उन्हें तत्काल रिहा किया जाए.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता का इतिहास काफी हद तक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के निरीक्षण पर जोर देने का इतिहास है. नजरबंदी का कानून, हालांकि दंडात्मक नहीं है, लेकिन केवल निवारक है. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निर्दिष्ट व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करता है इसलिए, प्राधिकरण कानून के तहत स्थापित प्रक्रिया के अनुसार हिरासत आदेश पारित करने के लिए बाध्य है. यह सुनिश्चित करेगा कि संवैधानिक सुरक्षा उपायों का पालन किया गया है.’

जौनपुर के सराय ख्वाजा इलाके में भदेथी गांव में दलित और मुस्लिम समुदाय के बीच हुई झड़प के बाद जावेद सिद्दीकी को इस साल जून में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद जौनपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने बाद में 10 जुलाई को उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की धारा 3(2) के तहत हिरासत आदेश जारी किया था.

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