महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव को ‘जंगलराज का युवराज’ बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निगाह में बिहार में भाजपा एवं एनडीए के आपराधिक पृष्ठभूमि के करीब 45 फीसदी उम्मीदवार क्या गंगाजल की तरह पावन और निर्मल हैं?
जाहिर है कि संविधान की शपथ लेने वाले प्रधानमंत्री उनके लिए भी जनता से वोट मांग ही रहे हैं. यह जुमला उनके लिए और भी शर्मनाक इसलिए है कि जिन नीतीश कुमार की सोहबत में उन्होंने यह डायलॉग मारा क्योंकि उन्हीं की साझा सरकार में तेजस्वी यादव पौने दो साल उपमुख्यमंत्री रहे हैं.
वह सरकार भी तेजस्वी के पिता लालू यादव द्वारा नीतीश के सार्वजनिक राजतिलक के बूते बनी थी. यह दीगर है कि लालू के पलटू यानी नीतीश उन्हें धोखा देकर पौने दो साल में ही वापस मोदी और भाजपा की गोद में जा बैठे, जिसका हिसाब देना अब उन्हें भारी पड़ रहा है.
जिस जंगलराज के हौए से मोदी अपने बेतुके लॉकडाउन की मार से त्रस्त बिहार की जनता को डरा रहे हैं, उस काल में तो तेजस्वी बालिग भी नहीं हुए थे, इसलिए मुंगेर में पुलिस गोलीकांड में दुर्गा पंडाल में जमा लोगों की मौतों पर होंठ सिल चुके प्रधानमंत्री का लालूराज की उलाहना तेजस्वी को देने के पीछे उनकी नीयत पर विचार करना जरूरी है.
क्या प्रधानमंत्री के इस गब्बर शैली के उद्दाम चुनावी डायलॉग में तेजस्वी और विपक्षी महागठबंधन के लिए चेतावनी छुपी है?
क्या प्रधानमंत्री महागठबंधन को अपने जुमलों के जरिये यह जता रहे हैं कि जनता उन्हें भले बहुमत देकर सत्ता सौंप दे, मगर मोदी सरकार उन्हें राज नहीं करने देगी?
प्रधानमंत्री की ऐसी नीयत की आशंका कतई अतिशयोक्ति नहीं है. भाजपा जिस प्रकार अपने उन्नायक नीतीश कमार को लोजपा नेता चिराग पासवान से बेइज्जत करवाकर उन्हें निपटाने की साजिश रच रही है उसके आगे तेजस्वी की भला क्या बिसात?
यूं भी मोदी सरकार द्वारा विपक्षी नेताओं और आरएसएस विरोधी विचारधारा के अनुयायियों के खिलाफ जिस तरह एनआईए, ईडी, आयकर विभाग और सीबीआई सहित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का दुरूपयोग किया जा रहा है, इस आशंका को उससे बल मिलता है.