पुलिस द्वारा 5 जनवरी की शाम कैंपस में हुई हिंसा के ‘घटनाक्रम और स्थानीय पुलिस द्वारा हुई लापरवाही’ की जांच के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई गई थी. अब सामने आया है कि इसने पुलिस बल को इस मामले में क्लीन चिट दी है.
उस शाम बड़ी संख्या में चेहरा ढके और हाथों में डंडे लिए युवक और युवतियां लोगों को पीटते और वाहनों को तोड़ते दिखे. साबरमती हॉस्टल समेत कई इमारतों में जमकर तोड़फोड़ की गई.
हमलावरों ने शिक्षकों और स्टाफ को भी नहीं छोड़ा. इस मारपीट में छात्रसंघ की अध्यक्ष ओइशी घोष को भी काफी चोटें आई थीं. कुल मिलाकर पैंतीस से अधिक लोग घायल हुए थे.
इस हिंसा को लेकर एफआईआर भी हुई थी और मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया था. हालांकि अब तक इस मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है.
हिंसा के बाद इस बारे में कई सवाल उठे थे कि जब परिसर में मारपीट और तोड़फोड़ चल रही थी, तब पुलिस मेन गेट के बाहर ही क्यों खड़ी रही थी. यह पुलिस द्वारा इससे कुछ सप्ताह पहले जामिया मिलिया इस्लामिया में की गई कार्यवाही से बिल्कुल उलट था, जहां पुलिस कैंपस में घुस गई थी और कथित तौर पर लाइब्रेरी के अंदर जाकर छात्रों के साथ मारपीट की गई थी.
इस बारे में पुलिस का कहना था कि वे जामिया में ‘दंगाइयों’ का पीछा करते हुए घुसे थे, जबकि जेएनयू में वे विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति के बिना नहीं जा सकते थे.